तापमान में उतार-चढ़ाव से धान के पौधों में खैरा रोग का बढ़ा खतरा, फसल को ऐसे बचाएं

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“धान में खैरा रोग केवल उस भूमि में ही उत्पन्न होता है, जिसकी मिट्टी में इस पोषक तत्व का अभाव होता है। यह रोग वहां भी पाया जाता है, जहां की मिट्टी में जिंक की उपस्थिति होने पर भी मृदा क्षारता या किसी अन्य कारणों से यह पोषण तत्व पौधों को उपलब्ध नहीं हो पाता हैं…

करायपरसुराय (पवन कुमार)। धान की फसल इस समय खेतों में लहलहा रही है। उत्पादन कम होने का मुख्य कारण मानसून की अनिश्चितता व किसानों को सही तकनीकी की जानकारी का अभाव है।

करायपरसुराय के किसान शेलेन्द्र कुमार, सुधीर प्रसाद, अयोध्या महतो, बेरथू के किसान राकेश कुमार मौर्या, राजबलभ यादव  ने कहा की धान की फसलों पर लगने वाले विभिन्न प्रकार के कीटों एवं रोगों का प्रकोप भी है। इन्हीं रोगों में से ही महत्वपूर्ण रोग है धान का खैरा रोग। इसके बचाव के किसानों को दवा का छिड़काव करना चाहिए।

रोग के कारणः  यह रोग जिक की कमी के कारण होता है। जिक पौधों के लिए एक आवश्यक पोषक तत्व है तथा यह एन्जाइम का ही भाग होता है, जो प्रोटीन संश्लेषण एवं शर्कराओं के आक्सीकरण से संबंधित होता है।

धान में खैरा रोग केवल उस भूमि में ही उत्पन्न होता है, जिसकी मिट्टी में इस पोषक तत्व का अभाव होता है। यह रोग वहां भी पाया जाता है, जहां की मिट्टी में जिंक की उपस्थिति होने पर भी मृदा क्षारता या किसी अन्य कारणों से यह पोषण तत्व पौधों को उपलब्ध नहीं हो पाता हैं।

किसान ने बताई फसल की रोगः किसान अबिनास कुमार, बब्लू महतो, अजित कुमार ने बताया की तापमान में लगातार उतार चढ़ाव को लेकर धान की फसलों में कई तरह के रोग लगने की संभावना प्रबल हो जाती है।

धान में रोग पौधों की पत्तियों के आधार पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बों के रूप मे प्रकट होते हैं, जो समय के साथ बढ़ते हुए पत्तियों के सभी भागों में फैल कर कत्थई रंग में बदल जाते हैं। इससे पूरी पत्ती सूखने लगती है। फसल के उत्पादन में गिरावट आ जाती है। यदि रोग ज्यादा फैल जाता है तो किसानों को काफी हानि का सामना करना पड़ता है।

बोले वैज्ञानिकः वैज्ञानिक उमेश नारायण उमेश ने कहा कि  किसान को फसल पर ध्यान देना चाहिए। धान की फसल मे खैरा रोग जिंक की कमी के कारण होता है। इस रोग की पहचान करना आसान है। इसमें पत्तियो पर हल्के पीले रंग के धब्बे बनते हैं, जो बाद में कत्थई रंग के हो जाते है। पौधा बौना रह जाता है और व्यात कम होती है।

प्रभावित पौधों की जडे़ भी कत्थई रंग की हो जाती हैं। इसकी रोकथाम के लिए धान की फसल पर 7 किग्रा जिक सल्फेट व 30 किग्रा यूरिया में मिलाकर प्रति एकड़ में प्रयोग करें। जो किसान पहले से यूरिया का प्रयोग कर चुके है, उन किसान भाइयो को यूरिया की जगह बालू या भूरभूरा मिट्टी में मिलाकर प्रयोग करना होगा।

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