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बिहार में लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान मतदान प्रतिशत में आई कमी का मूल कारण

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नालंदा दर्पण डेस्क / मुकेश भारतीय । बिहार में लोकसभा चुनाव-2024 के दौरान मतदान प्रतिशत में आई कमी ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में गहरी चिंता उत्पन्न की है। पिछले चुनावों के मतदान प्रतिशत की तुलना में इस बार का आंकड़ा काफी नीचे गिरा है, जो राज्य के लोकतांत्रिक ढांचे के लिए चिंताजनक है। 2019 के लोकसभा चुनाव में, बिहार में मतदान प्रतिशत 57.33% था, जबकि 2024 में यह घटकर 52.50% पर आ गया है। यह आंकड़े राज्य की राजनीतिक सहभागिता में गिरावट का स्पष्ट संकेत देते हैं। मतदान प्रतिशत में कमी का सीधा असर राज्य की राजनीतिक स्थिरता और विकास पर पड़ता है। 

इस गिरावट के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन प्रमुख कारणों में से एक है लोगों का बाहर पलायन। रोजगार, शिक्षा और बेहतर जीवन की तलाश में बड़ी संख्या में लोग राज्य से बाहर चले गए हैं। जिससे मतदान के समय वे अपने गृह राज्य में मौजूद नहीं होते। इसके अलावा चुनावी प्रक्रिया में विश्वास की कमी, उम्मीदवारों के प्रति उदासीनता और राजनीतिक पार्टियों के प्रति निराशा भी प्रमुख कारणों में शामिल हैं।

वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह आवश्यक है कि इस मुद्दे को गंभीरता से लिया जाए। मतदान प्रतिशत में कमी का सीधा असर राज्य की राजनीतिक स्थिरता और विकास पर पड़ता है। यह न केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी को दर्शाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि लोगों की राजनीतिक और सामाजिक समस्याओं के प्रति कितनी जागरूकता है।

इस परिवर्तन के संकेतकों में मुख्य रूप से युवाओं की उदासीनता, ग्रामीण क्षेत्रों में मतदान की कमी और शहरी क्षेत्रों में मतदान केंद्रों तक पहुंच की समस्याएं शामिल हैं। यह सभी कारक मिलकर एक जटिल समस्या का निर्माण करते हैं। जिसे समझना और समाधान निकालना आवश्यक है। बिहार के भविष्य के लिए यह जरूरी है कि मतदान प्रतिशत में सुधार लाया जाए। ताकि राज्य की जनता की आवाज़ सही तरीके से सुनी जा सके और लोकतंत्र की जड़ें और भी मजबूत हो सकें।

बिहार से बाहर पलायन के प्रमुख कारणः

बिहार से बाहर पलायन के प्रमुख कारणों में रोजगार के अवसरों की कमी प्रमुख है। राज्य में औद्योगिक और तकनीकी विकास की धीमी गति के कारण स्थानीय युवाओं के लिए पर्याप्त रोजगार अवसर उपलब्ध नहीं हो पाते। हाईस्कूल और कॉलेज की शिक्षा पूरी कर चुके युवा अक्सर बेहतर अवसरों की तलाश में मेट्रो शहरों की ओर रुख करते हैं। इससे न केवल राज्य के आर्थिक ढांचे पर, बल्कि सामाजिक ताने-बाने पर भी प्रभाव पड़ता है।

शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति भी पलायन को बढ़ावा देती है। बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की गुणवत्ता और स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में कमी है। अच्छे स्कूल और कॉलेज की तलाश में विद्यार्थी राज्य से बाहर जाते हैं और वहीं बस जाते हैं। इसी तरह गंभीर बीमारियों के इलाज और उच्चस्तरीय स्वास्थ्य सेवाओं के लिए लोग अन्य राज्यों का रुख करते हैं।

बेहतर जीवनशैली की तलाश भी एक महत्वपूर्ण कारण है। बड़े शहरों में उच्च वेतन, बेहतर आवास, और उन्नत सुख-सुविधाओं की उपलब्धता लोगों को आकर्षित करती है। बिहार के कई लोग अपने परिवारों के साथ बेहतर जीवनशैली और भविष्य की संभावनाओं की तलाश में पलायन करते हैं। पलायन की दर में वृद्धि के आँकड़े भी इस प्रवृत्ति को स्पष्ट करते हैं।

पिछले कुछ दशकों में बिहार से बाहर पलायन की दर में निरंतर वृद्धि देखी गई है। यह न केवल राज्य की जनसंख्या संरचना को बदल रहा है, अपितु राज्य की आर्थिक स्थिति पर भी गंभीर प्रभाव डाल रहा है। पलायन के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में जनसंख्या घट रही है। जिससे कृषि और स्थानीय उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

सामाजिक और आर्थिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए यह स्पष्ट होता है कि बिहार से बाहर पलायन एक जटिल समस्या है। जो रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और जीवनशैली जैसे कई मूलभूत कारणों से उत्पन्न होती है। इसका समाधान राज्य के विकास और बुनियादी ढांचे में सुधार के माध्यम से ही संभव है।

पलायन का मतदान प्रतिशत पर सीधा प्रभावः

बिहार में लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान मतदान प्रतिशत में आई कमी का एक प्रमुख कारण राज्य से बड़े पैमाने पर लोगों का बाहर पलायन है। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों से काम की तलाश में अन्य राज्यों या विदेशों में जाने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है, जिससे उनके मतदान में भागीदारी में कमी आई है।

पलायन के बाद वोटर लिस्ट में से नाम हटाने की प्रक्रिया भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। जब लोग अपने स्थायी पते से दूर चले जाते हैं तो अक्सर वे अपने नाम को वोटर लिस्ट से हटवाना या अपने नए पते पर वोटर लिस्ट में जोड़ना भूल जाते हैं। इससे वोटर लिस्ट में मृत या गैर-मौजूद वोटरों की संख्या बढ़ जाती है। जो मतदान प्रतिशत को प्रभावित करती है।

इसके अतिरिक्त गैर-मौजूदगी के कारण मतदान में भागीदारी में कमी भी देखने को मिलती है। जब लोग चुनाव के दौरान अपने गृह राज्य में मौजूद नहीं होते हौं तो वे मतदान नहीं कर पाते हैं। यह न केवल उनके व्यक्तिगत मतदान अधिकारों को प्रभावित करता है, बल्कि वह कुल मतदान प्रतिशत को भी कम करता है।

स्थानीय स्तर पर चुनावी जागरूकता की कमी भी एक महत्वपूर्ण कारण है। जब लोग पलायन करते हैं तो वे अपने नए स्थान पर चुनावी प्रक्रिया और उम्मीदवारों के बारे में उतनी जानकारी नहीं रखते, जितनी कि उनके स्थायी पते पर होती है। इससे उनके मतदान में भागीदारी की संभावना कम हो जाती है।

विभिन्न रिपोर्ट्स और स्टडीज ने भी इस प्रभाव को मापा है। उदाहरण के लिए एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार से पलायन करने वाले लोगों की संख्या में हर साल वृद्धि हो रही है और इसका सीधा असर मतदान प्रतिशत पर पड़ रहा है।

इस प्रकार बाहर पलायन के कारण बिहार में मतदान प्रतिशत में आई कमी एक जटिल मुद्दा है। जिसमें वोटर लिस्ट से नाम हटाने की प्रक्रिया, गैर-मौजूदगी के कारण मतदान में भागीदारी में कमी और स्थानीय स्तर पर चुनावी जागरूकता की कमी जैसे कई कारक शामिल हैं।

पलायन रोकने का समाधान और संभावित उपायः

इस समस्या के समाधान के लिए कुछ प्रभावी उपाय और संभावित समाधान आवश्यक हैं। सबसे पहले, प्रवासी मतदाताओं के लिए विशेष प्रावधानों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। वर्तमान में प्रवासी मतदाता अपने गृह राज्य में मतदान करने के लिए लौटने में असमर्थ होते हैं, जिससे मतदान प्रतिशत में गिरावट आती है। इस समस्या को हल करने के लिए डाक मतपत्र या इलेक्ट्रॉनिक मतदान प्रणाली जैसी सुविधाओं का विस्तार किया जा सकता है।

इसके अतिरिक्त मतदान प्रक्रिया को सरल और सुविधाजनक बनाने के उपायों पर विचार करना महत्वपूर्ण है। मतदाताओं के लिए अधिक मतदान केंद्रों की स्थापना, डिजिटल मतदान की सुविधा और मोबाइल मतदान इकाइयों का उपयोग मतदान को अधिक सुलभ बना सकता है। इसके अलावा मतदान के दिन को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करना भी एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। ताकि अधिक से अधिक लोग अपने मतदान के अधिकार का प्रयोग कर सकें।

जनजागरूकता अभियानों की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। चुनाव आयोग और सरकार को मिलकर व्यापक जनजागरूकता अभियानों का संचालन करना चाहिए। जिससे मतदाताओं को उनके अधिकारों और मतदान के महत्व के बारे में जानकारी मिले। सोशल मीडिया, टेलीविजन, रेडियो और प्रिंट मीडिया के माध्यम से जागरूकता फैलाई जा सकती है। साथ ही गैर-सरकारी संगठनों और स्थानीय समुदायों के साथ साझेदारी करके भी इस दिशा में काम किया जा सकता है।

सरकार और चुनाव आयोग द्वारा उठाए गए कदमों की प्रभावशीलता भी महत्वपूर्ण है। उनके द्वारा लागू किए गए उपायों का नियमित मूल्यांकन और निगरानी आवश्यक है। ताकि किसी भी प्रकार की कमी को समय रहते सुधारा जा सके। इन सभी उपायों के सामूहिक प्रयास से ही बिहार में लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान मतदान प्रतिशत में आई कमी को प्रभावी ढंग से सुधारा जा सकता है।

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